MAA MANSA DEVI KI MAHIMA | मनसा देवी: की महीमा
मनसा देवी:
माता मनसा देवी, नाम के अनुरूप ही भक्तों की समस्त मंशाओं को पूरी करने वाली देवी है.
कहा जाता है कि ये भगवान शिव की मानस पुत्री है. वहीं पुराने ग्रंथो में ये भी कहा गया है कि मनसा देवी का जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है. कुछ ग्रंथो की मानें तो उन्हें नागराज वासुकी की एक बहन पाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए, भगवान शिव ने उन्हें भेंट किया था.
वासुकी इनके तेज को संभाल ना सके और इनके पोषण की ज़िम्मेदारी नागलोक के तपस्वी हलाहल को दे दी .| इनकी रक्षा करते करते हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिए. अपने माता पिता में भ्रम होने के कारण इन्हे देवों द्वारा उठाए गए आनंद से वांछित रखा गया,इसलिए, वह उन लोगों के लिए बेहद उग्र देवी है, जो पूजा करने से इनकार करते हैं, जबकि उनके लिए बेहद दयालु और करुणामयी जो भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं.
मनसा देवी का पंथ मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित है. मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं, सात नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये इस प्रकार है:
जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.
देवी मनसा की आमतौर पर बरसात के दौरान पूजा की जाती है, क्योंकि साँप उस दौरान अधिक सक्रिय होते हैं.
हरिद्वार स्तिथ माता के मंदिर में एक मनसा पूर्ण करने वाला पेड़ है, जिसपर लोग अपनी इच्छा पूर्ती के लिए धागे बांधते है. यहाँ चैत्र और आश्रि्वन मास के नवरात्रों में मेला लगता है. लोगों की माने, तो यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से ४० दिन निरंतर यहाँ मंदिर प्रांगण में भक्ति भाव से पूजा करे तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.
मनसा देवी की पूजा : मनसा देवी की पूजा बंगाल में गंगा दशहरा के दिन होती है जबकि कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजी जाती हैं। मान्यता अनुसार पंचमी के दिन घर के आंगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नाग पूजा होती है।
मनसा देवी की साधना विधि
साधना सामग्री-लाल चन्दन की लकड़ी, नीला व सफेद धागा जो 8-8 अंगुल का हो। कलश के लिए नारियल, सफेद व लाल वस्त्र, फल, पुष्प, दीप, धूप व पॅच मेवा समेत आदि सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए।
प्रातःकाल स्नान ध्यान करके पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा दे और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछाकर उस पर एक 7 मुख वाला नाग ऑटे का बनाकर स्थापित करें। दूसरे पात्र में एक शिवलिंग स्थापित करें।
पहले गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें उसके बाद भगवान बिष्णु का फिर शिव जी का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप,फल, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी को अर्पित करें। यह साधना रविवार को सांय 7 से 11 बजे के बीच करनी चाहिए। साधना करने के लिए रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। साधना काल में अखण्ड ज्योति जलती रहनी चाहिए।
इस मन्त्र ‘‘ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट''का सवा लाख बार जप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
मन्त्र में जहां पर अमुक शब्द लिखा वहां पर अपनी कोई भी मनोकामना का प्रयोग कर सकते है।
मनसा देवी की साधना से लाभ
मनसा देवी की साधना करने से कैसा भी सर्पदोष हो समाप्त हो जाता है।
आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मनसा देवी की आराधना करना उत्तम रहता है।
अगर आपके घर में बाधायें बनी रहती है तो मनसा देवी की नियमित पूजा करें। हर बाधा समाप्त हो जायेगी।
किसी के उपर भूत-प्रेत आदि शक्तियों का साया मडरा रहा है तो मनसा देवी की आराधना करने से लाभ मिलता है।
जिस व्यक्ति काफी दवा करने के बाद भी रोग ठीक नहीं होता है, उसे मनसा देवी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से वह शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।
जिन माताओं बहनों को शारीरिक पीड़ा बनी रहती है, उन्हें मनसा देवी का पूजन करने से अत्यन्त लाभ मिलता है।
मनसा स्तोत्र
मनसा स्तोत्र मनसा देवी को भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री हैं । इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तिक रखा गया । आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया । मनसा स्तोत्र के फलश्रुति में कहा है- हे लक्ष्मी ! यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है ।
मनसा देवी:
माता मनसा देवी, नाम के अनुरूप ही भक्तों की समस्त मंशाओं को पूरी करने वाली देवी है.
कहा जाता है कि ये भगवान शिव की मानस पुत्री है. वहीं पुराने ग्रंथो में ये भी कहा गया है कि मनसा देवी का जन्म कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है. कुछ ग्रंथो की मानें तो उन्हें नागराज वासुकी की एक बहन पाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिए, भगवान शिव ने उन्हें भेंट किया था.
वासुकी इनके तेज को संभाल ना सके और इनके पोषण की ज़िम्मेदारी नागलोक के तपस्वी हलाहल को दे दी .| इनकी रक्षा करते करते हलाहल ने अपने प्राण त्याग दिए. अपने माता पिता में भ्रम होने के कारण इन्हे देवों द्वारा उठाए गए आनंद से वांछित रखा गया,इसलिए, वह उन लोगों के लिए बेहद उग्र देवी है, जो पूजा करने से इनकार करते हैं, जबकि उनके लिए बेहद दयालु और करुणामयी जो भक्ति के साथ उनकी पूजा करते हैं.
मनसा देवी का पंथ मुख्यतः भारत के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित है. मनसा देवी मुख्यत: सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजित हैं, सात नाग उनके रक्षण में सदैव विद्यमान हैं. इनके सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता. ये इस प्रकार है:
जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी.
देवी मनसा की आमतौर पर बरसात के दौरान पूजा की जाती है, क्योंकि साँप उस दौरान अधिक सक्रिय होते हैं.
हरिद्वार स्तिथ माता के मंदिर में एक मनसा पूर्ण करने वाला पेड़ है, जिसपर लोग अपनी इच्छा पूर्ती के लिए धागे बांधते है. यहाँ चैत्र और आश्रि्वन मास के नवरात्रों में मेला लगता है. लोगों की माने, तो यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से ४० दिन निरंतर यहाँ मंदिर प्रांगण में भक्ति भाव से पूजा करे तो उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.
मनसा देवी की पूजा : मनसा देवी की पूजा बंगाल में गंगा दशहरा के दिन होती है जबकि कहीं-कहीं कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजी जाती हैं। मान्यता अनुसार पंचमी के दिन घर के आंगन में नागफनी की शाखा पर मनसा देवी की पूजा करने से विष का भय नहीं रह जाता। मनसा देवी की पूजा के बाद ही नाग पूजा होती है।
मनसा देवी की साधना विधि
साधना सामग्री-लाल चन्दन की लकड़ी, नीला व सफेद धागा जो 8-8 अंगुल का हो। कलश के लिए नारियल, सफेद व लाल वस्त्र, फल, पुष्प, दीप, धूप व पॅच मेवा समेत आदि सामग्री एकत्रित कर लेनी चाहिए।
प्रातःकाल स्नान ध्यान करके पूजा स्थान में एक बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा दे और उस पर एक पात्र में चन्दन के टुकड़े बिछाकर उस पर एक 7 मुख वाला नाग ऑटे का बनाकर स्थापित करें। दूसरे पात्र में एक शिवलिंग स्थापित करें।
पहले गणेश जी का पंचोपचार पूजन करें उसके बाद भगवान बिष्णु का फिर शिव जी का पंचोपचार पूजन करें। पूजन में धूप, दीप,फल, पुष्प, नैवेद्य आदि सभी को अर्पित करें। यह साधना रविवार को सांय 7 से 11 बजे के बीच करनी चाहिए। साधना करने के लिए रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करना चाहिए। साधना काल में अखण्ड ज्योति जलती रहनी चाहिए।
इस मन्त्र ‘‘ऊॅ हु मनसा अमुक हु फट''का सवा लाख बार जप करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है।
मन्त्र में जहां पर अमुक शब्द लिखा वहां पर अपनी कोई भी मनोकामना का प्रयोग कर सकते है।
मनसा देवी की साधना से लाभ
मनसा देवी की साधना करने से कैसा भी सर्पदोष हो समाप्त हो जाता है।
आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए मनसा देवी की आराधना करना उत्तम रहता है।
अगर आपके घर में बाधायें बनी रहती है तो मनसा देवी की नियमित पूजा करें। हर बाधा समाप्त हो जायेगी।
किसी के उपर भूत-प्रेत आदि शक्तियों का साया मडरा रहा है तो मनसा देवी की आराधना करने से लाभ मिलता है।
जिस व्यक्ति काफी दवा करने के बाद भी रोग ठीक नहीं होता है, उसे मनसा देवी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से वह शीघ्र ही स्वस्थ्य हो जायेगा।
जिन माताओं बहनों को शारीरिक पीड़ा बनी रहती है, उन्हें मनसा देवी का पूजन करने से अत्यन्त लाभ मिलता है।
मनसा स्तोत्र
मनसा स्तोत्र मनसा देवी को भगवान शिव और माता पार्वती की पुत्री हैं । इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है इस कारण इनका नाम मनसा पड़ा। समय आने पर भगवान शिव ने अपनी पुत्री का विवाह जरत्कारू के साथ किया और इनके गर्भ से एक तेजस्वी पुत्र हुआ जिसका नाम आस्तिक रखा गया । आस्तिक ने नागों के वंश को नष्ट होने से बचाया । मनसा स्तोत्र के फलश्रुति में कहा है- हे लक्ष्मी ! यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है । जो नित्य भक्ति-पूर्वक इसे पढ़ता या सुनता है – उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता ।
मनसादेवी स्तोत्रम्
।। अथ ध्यानः ।।
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।
।। मनसा मूल-स्तोत्र ।।
श्रीनारायण उवाच ।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।
।। मनसा स्तोत्र फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।
मनसादेवी स्तोत्रम् २
देवी त्वां स्तोतुमिच्छामि सा विनां प्रवरा परम् ।
परात्परां च परमां नहि स्तोतुं क्षयोsधुना ।। १ ।।
स्तोत्राणां लक्षणं वेदे स्वभावाव्यानत: परम् ।
न क्षम: प्रकृति वक्तुं गुणानां तब सुव्रते ।। २ ।।
शुद्रसत्वस्वरुपा त्वम् कोपहिंसाविवर्जिता ।
न च सप्तो मुनिस्तेन त्यक्तया च त्वया यत: ।। ३ ।।
त्वं मया पूजिता साध्वी जननी च यथाsदिति: ।
दयारुपा च भगिनी क्षमारुपा यथा प्रसु: ।। ४ ।।
त्वया मे रक्षिता: प्राणा: पुत्रदारा सुरेश्वरी ।
अहं करोमि त्वां पूज्यां मम प्रीतिश्छ वर्धते ।। ५ ।।
नित्यं यद्यपि पूज्यां त्वां भवेsत्र जगदम्बिके ।
तथाsपि तव पूजां वै वर्धयामि पुन: पुन: ।। ६ ।।
ये त्वयाषाढसङ्क्रान्त्या पूजयिष्यन्ति भक्तित: ।
पञ्चम्यां मनसारव्या यां मासान्ते दिने दिने ।। ७ ।।
पुत्रपौत्रादयस्तेषां वर्धन्ते न धनानि च ।
यशस्विन: कीर्तिमन्तो विद्यावन्तो गुणान्विता: ।। ८ ।।
ये त्वां न पूजयिष्यन्ति निन्दन्त्यज्ञानतो जना: ।
लक्ष्मी हीना भविष्यन्ति तेषां नागभयं सदा ।। ९ ।।
त्वं स्वर्गलक्ष्मी: स्वर्गे च वैकुण्ठे कमलाकला ।
नारायणांशो भगवन् जरत्कारुर्मुनीश्वर: ।। १० ।।
तपसा तेजसा त्वं च मनसा ससृजे पिता ।
अस्माकं रक्षणायैव तेन त्वं मनसाभिदा ।। ११ ।।
मनसादेवी त्वं शक्त्या चाssत्मना सिद्धयोगिनी ।
तेन त्वं मनसादेवी पूजिता वन्दिता भवे ।। १२ ।।
यां भक्त्या मनसा देवा: पूजयन्त्यंनिशं भृशम् ।
तेन त्वं मनसादेवीं प्रवदन्ति पुराविद: ।। १३ ।।
सत्त्वरुपा च देवी त्वं शश्वत्सर्वानषेवया ।
यो हि यद्भावयेन्नित्यं शतं प्राप्नोति तत्समम् ।। १४ ।।
इदं स्तोत्रं पुण्यवीजं तां संपूज्य च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।। १५ ।।
विषं भवेत्सुधातुल्य सिद्धस्तोत्रं यदा पठेत् ।
पञ्चलक्ष जपेनैव सिद्ध्यस्तोत्रो भवेन्नर ।।
सर्पशायी भवेत्सोsपि निश्चितं सर्ववाहन: ।। १६ ।।
।। इति महेन्द्रकृतं मनसादेवीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
मनसा द्वादशनाम स्तोत्रम्
जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। १ ।।
जरत्कारुप्रियाssस्तीकमाता विषहरीती च ।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। २ ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भस्य च ।। ३ ।।
नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मन्दिरे ।
नागभीते महादुर्गे नागवेष्ठितविग्रहे ।। ४ ।।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुञ्चते नात्रसंशय: ।
नित्यं पठेद् य: तं दृष्ट्वा नागवर्ग: पलायते ।। ५ ।।
नागौधं भूषणं कृत्वा स भवेत् नागवाहना: ।
नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेन्नर: ।। ६ ।।
।। इति मनसादेवीद्वादशनाम स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
मनसादेवी स्तोत्रम्
।। अथ ध्यानः ।।
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।
।। मनसा मूल-स्तोत्र ।।
श्रीनारायण उवाच ।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।
।। मनसा स्तोत्र फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।
मनसादेवी स्तोत्रम् २
देवी त्वां स्तोतुमिच्छामि सा विनां प्रवरा परम् ।
परात्परां च परमां नहि स्तोतुं क्षयोsधुना ।। १ ।।
स्तोत्राणां लक्षणं वेदे स्वभावाव्यानत: परम् ।
न क्षम: प्रकृति वक्तुं गुणानां तब सुव्रते ।। २ ।।
शुद्रसत्वस्वरुपा त्वम् कोपहिंसाविवर्जिता ।
न च सप्तो मुनिस्तेन त्यक्तया च त्वया यत: ।। ३ ।।
त्वं मया पूजिता साध्वी जननी च यथाsदिति: ।
दयारुपा च भगिनी क्षमारुपा यथा प्रसु: ।। ४ ।।
त्वया मे रक्षिता: प्राणा: पुत्रदारा सुरेश्वरी ।
अहं करोमि त्वां पूज्यां मम प्रीतिश्छ वर्धते ।। ५ ।।
नित्यं यद्यपि पूज्यां त्वां भवेsत्र जगदम्बिके ।
तथाsपि तव पूजां वै वर्धयामि पुन: पुन: ।। ६ ।।
ये त्वयाषाढसङ्क्रान्त्या पूजयिष्यन्ति भक्तित: ।
पञ्चम्यां मनसारव्या यां मासान्ते दिने दिने ।। ७ ।।
पुत्रपौत्रादयस्तेषां वर्धन्ते न धनानि च ।
यशस्विन: कीर्तिमन्तो विद्यावन्तो गुणान्विता: ।। ८ ।।
ये त्वां न पूजयिष्यन्ति निन्दन्त्यज्ञानतो जना: ।
लक्ष्मी हीना भविष्यन्ति तेषां नागभयं सदा ।। ९ ।।
त्वं स्वर्गलक्ष्मी: स्वर्गे च वैकुण्ठे कमलाकला ।
नारायणांशो भगवन् जरत्कारुर्मुनीश्वर: ।। १० ।।
तपसा तेजसा त्वं च मनसा ससृजे पिता ।
अस्माकं रक्षणायैव तेन त्वं मनसाभिदा ।। ११ ।।
मनसादेवी त्वं शक्त्या चाssत्मना सिद्धयोगिनी ।
तेन त्वं मनसादेवी पूजिता वन्दिता भवे ।। १२ ।।
यां भक्त्या मनसा देवा: पूजयन्त्यंनिशं भृशम् ।
तेन त्वं मनसादेवीं प्रवदन्ति पुराविद: ।। १३ ।।
सत्त्वरुपा च देवी त्वं शश्वत्सर्वानषेवया ।
यो हि यद्भावयेन्नित्यं शतं प्राप्नोति तत्समम् ।। १४ ।।
इदं स्तोत्रं पुण्यवीजं तां संपूज्य च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।। १५ ।।
विषं भवेत्सुधातुल्य सिद्धस्तोत्रं यदा पठेत् ।
पञ्चलक्ष जपेनैव सिद्ध्यस्तोत्रो भवेन्नर ।।
सर्पशायी भवेत्सोsपि निश्चितं सर्ववाहन: ।। १६ ।।
।। इति महेन्द्रकृतं मनसादेवीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
मनसा द्वादशनाम स्तोत्रम्
जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। १ ।।
जरत्कारुप्रियाssस्तीकमाता विषहरीती च ।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। २ ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भस्य च ।। ३ ।।
नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मन्दिरे ।
नागभीते महादुर्गे नागवेष्ठितविग्रहे ।। ४ ।।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुञ्चते नात्रसंशय: ।
नित्यं पठेद् य: तं दृष्ट्वा नागवर्ग: पलायते ।। ५ ।।
नागौधं भूषणं कृत्वा स भवेत् नागवाहना: ।
नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेन्नर: ।। ६ ।।
।। इति मनसादेवीद्वादशनाम स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
मनसादेवी स्तोत्रम्
।। अथ ध्यानः ।।
चारु-चम्पक-वर्णाभां, सर्वांग-सु-मनोहराम् ।
नागेन्द्र-वाहिनीं देवीं, सर्व-विद्या-विशारदाम् ।।
।। मनसा मूल-स्तोत्र ।।
श्रीनारायण उवाच ।
नमः सिद्धि-स्वरुपायै, वरदायै नमो नमः ।
नमः कश्यप-कन्यायै, शंकरायै नमो नमः ।।
बालानां रक्षण-कर्त्र्यै, नाग-देव्यै नमो नमः ।
नमः आस्तीक-मात्रे ते, जरत्-कार्व्यै नमो नमः ।।
तपस्विन्यै च योगिन्यै, नाग-स्वस्रे नमो नमः ।
साध्व्यै तपस्या-रुपायै, शम्भु-शिष्ये च ते नमः ।।
।। मनसा स्तोत्र फल-श्रुति ।।
इति ते कथितं लक्ष्मि ! मनसाया स्तवं महत् ।
यः पठति नित्यमिदं, श्रावयेद् वापि भक्तितः ।।
न तस्य सर्प-भीतिर्वै, विषोऽप्यमृतं भवति ।
वंशजानां नाग-भयं, नास्ति श्रवण-मात्रतः ।।
मनसादेवी स्तोत्रम् २
देवी त्वां स्तोतुमिच्छामि सा विनां प्रवरा परम् ।
परात्परां च परमां नहि स्तोतुं क्षयोsधुना ।। १ ।।
स्तोत्राणां लक्षणं वेदे स्वभावाव्यानत: परम् ।
न क्षम: प्रकृति वक्तुं गुणानां तब सुव्रते ।। २ ।।
शुद्रसत्वस्वरुपा त्वम् कोपहिंसाविवर्जिता ।
न च सप्तो मुनिस्तेन त्यक्तया च त्वया यत: ।। ३ ।।
त्वं मया पूजिता साध्वी जननी च यथाsदिति: ।
दयारुपा च भगिनी क्षमारुपा यथा प्रसु: ।। ४ ।।
त्वया मे रक्षिता: प्राणा: पुत्रदारा सुरेश्वरी ।
अहं करोमि त्वां पूज्यां मम प्रीतिश्छ वर्धते ।। ५ ।।
नित्यं यद्यपि पूज्यां त्वां भवेsत्र जगदम्बिके ।
तथाsपि तव पूजां वै वर्धयामि पुन: पुन: ।। ६ ।।
ये त्वयाषाढसङ्क्रान्त्या पूजयिष्यन्ति भक्तित: ।
पञ्चम्यां मनसारव्या यां मासान्ते दिने दिने ।। ७ ।।
पुत्रपौत्रादयस्तेषां वर्धन्ते न धनानि च ।
यशस्विन: कीर्तिमन्तो विद्यावन्तो गुणान्विता: ।। ८ ।।
ये त्वां न पूजयिष्यन्ति निन्दन्त्यज्ञानतो जना: ।
लक्ष्मी हीना भविष्यन्ति तेषां नागभयं सदा ।। ९ ।।
त्वं स्वर्गलक्ष्मी: स्वर्गे च वैकुण्ठे कमलाकला ।
नारायणांशो भगवन् जरत्कारुर्मुनीश्वर: ।। १० ।।
तपसा तेजसा त्वं च मनसा ससृजे पिता ।
अस्माकं रक्षणायैव तेन त्वं मनसाभिदा ।। ११ ।।
मनसादेवी त्वं शक्त्या चाssत्मना सिद्धयोगिनी ।
तेन त्वं मनसादेवी पूजिता वन्दिता भवे ।। १२ ।।
यां भक्त्या मनसा देवा: पूजयन्त्यंनिशं भृशम् ।
तेन त्वं मनसादेवीं प्रवदन्ति पुराविद: ।। १३ ।।
सत्त्वरुपा च देवी त्वं शश्वत्सर्वानषेवया ।
यो हि यद्भावयेन्नित्यं शतं प्राप्नोति तत्समम् ।। १४ ।।
इदं स्तोत्रं पुण्यवीजं तां संपूज्य च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ।। १५ ।।
विषं भवेत्सुधातुल्य सिद्धस्तोत्रं यदा पठेत् ।
पञ्चलक्ष जपेनैव सिद्ध्यस्तोत्रो भवेन्नर ।।
सर्पशायी भवेत्सोsपि निश्चितं सर्ववाहन: ।। १६ ।।
।। इति महेन्द्रकृतं मनसादेवीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
मनसा द्वादशनाम स्तोत्रम्
जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ।। १ ।।
जरत्कारुप्रियाssस्तीकमाता विषहरीती च ।
महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ।। २ ।।
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च य: पठेत् ।
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भस्य च ।। ३ ।।
नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मन्दिरे ।
नागभीते महादुर्गे नागवेष्ठितविग्रहे ।। ४ ।।
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुञ्चते नात्रसंशय: ।
नित्यं पठेद् य: तं दृष्ट्वा नागवर्ग: पलायते ।। ५ ।।
नागौधं भूषणं कृत्वा स भवेत् नागवाहना: ।
नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेन्नर: ।। ६ ।।
।। इति मनसादेवीद्वादशनाम स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
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